Tuesday 19 May 2015

कोरा कागज

Posted by- radiateashok
कोरा कागज

 मेरे दिमाग में इर्द – गिर्द की एक कहानी उमड़ – घुमड़ कर भूचाल ला रही थी | इसलिए मेरा दिमाग अशांत व् पेट फूलने लगा | दिमाग को शांत व पेट को निचे बैठाने के लिए कोरे कागज की तलाश के लिए मेरे घर में वर्षो से पड़ी पुरानि किताबो व रद्दी के पास पहुँच गया | में उनको खंगालने लगा काफी देर खोजने के बाद उनमे से एक पांच पेज की खाली कॉपी मिली बाकि स्याही से भरी हुई थी | मेने उस खाली कॉपी को उठाया और कलम लेकर ऐसे गुमनाम जगह पर बेठ गया जहा किसी की नजर भी नहीं पड़े और न ही कानो तक कोई  आवाज पहुंचे | मेने अब उस कोरे कागज पर लेखनी चलाना शुरु कर दिया | कहानी बड़ी रोचक थी | मेरा सम्पूर्ण शरीर उस कहानी में डूब गया और उसमे गोते खाने लगा | कहानी की पांच लाइन लिख चूका था | अचानक मेरे कंधो पर जोरदार लट्ठ पड़ा | में दर्द के मारे बिजली की स्पीड से खड़ा हो गया | पलट कर देखा तो मेरा बाप लट्ठ लेकर यमदूत की तरह पीछे खड़ा था | बाप सावन के झूले की तरह नशे में झूल रहा था | में समझ गया बाप बेहोशी की हालत में है | उधर आंगन से भी माँ की गालियों की लपटे मेरे कानो तक पहुँच रही थी |  पढ़ेगा – लिखेगा तो कमाएगा कोन ? साला कमीना इतना समझाने के बाद भी पेन कॉपी लेकर बेठ जाता है , गायो – बकरियों को चराने का समय हो रहा है और कामचोर लिखने बेठ गया , इससे तेरे बाप का नाम रोशन हो जायेगा , पैसे आ जायेंगे | दो रूपए की मेहनत मजदूरी तो नहीं करता , फालतू काम लेकर बेठ जाता है | मेरा बाप मुझे गालियां निकालने लगा | में बाप से किसी तरह बचकर आंगन में आया तो ये बाप की गालियां भी माँ दोहरा रही थी इसलिए मेरे पुरे शरीर में कंपकंपी हो रही थी | शरीर में जो ताकत थी वो शून्य हो गई | में लड़खड़ाते कदमो से गाय बकरियों के बाड़े में आ गया | गाय – बकरियों को खोला और उनको लेकर जंगल की तरफ निकल पड़ा | आंसू पलकों से बाहर नहीं आ रहे थे , आँखों की तेजस से वही भाप बनकर हवा में उड़ रहे थे और में गहरे जख्मो के साथ गाँव को चीरता हुआ जंगल में पहुँच गया | जंगल में पहुचने के बाद भी दिमाग में भूचाल व पेट का गुब्बारा कम नहीं हो रहा था | कंधे में अभी भी वो दर्द परेशान कर रहा था व माँ की गालियाँ कानो में गूंज रही थी | इन सब जख्मो को भुलाने के लिए फिर से कोरा कागज बाहर निकाल लिया  और उस पर लेखनी चलाना शुरू कर दिया |
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कभी दो मिनट का समय मिलता तो कभी बकरियों के पीछे भागता तो फिर पांच मिनट का वक्त मिलता तो फिर मेरी लेखनी चलना शुरू हो जाती | फिर गायो को हांकने के लिए दोड़ता फिर दो मिनट मेरे कागज पर लेखनी दोड़ना शुरू हो जाती और यह सिलसिला पुरे दिन चलता रहा और सूर्य अस्त होने से पहले मेने उस कहानी को अंतिम रूप दे दिया और मेरा दिमाग व पेट दोनों हलके हो गए | मेने उस कहानी को फटी कमीज में  ऐसी जगह  छिपाया की किसी की नजर नहीं पड़े अन्यथा किसी ने देख या पढ़ लिया तो हंसी का खेल हो जायेगा | गोधुली वेला का वक्त हो रहा था और में गाय – बकरियों को लेकर बाड़े में पहुँच गया | मेने उस कहानी को बाप की नजरो से छिपाते हुए घर में पड़ी रद्दी किताबो के बिच छिपा दिया | उससे पहले भी ढेर सारी कहानिया रद्दी में छिपी हुई मुहं फाड़ रही थी |  में शाम को एक बाजरे की रोटी व गाय के दूध का एक कटोरा पिकर बिस्तरो में घुस गया | बिस्तरो में चाँद की मंद – मंद रौशनी व दुर्गन्ध आ रही थी तथा नींद भी आस - पास  नहीं फटक रही थी | मेरी रद्दी में छिपी हुई ढेर सारी कहानिया परेशान व बेचैन करने लगी | वो मेरे दिमाग के चारो तरफ कुण्डलिया बनाकर घुमने लगी | मेरे दिमाग में अनेक प्रशन उमड़ने लगे | इन कहानियो का क्या  किया जाय ?  इनको कहा और कैसे छपवाए ? घर – परिवार और गावं वालो को बताया गया तो एक तरफ हंसी उड़ेगी तो दूसरी तरफ गलियां मिलेगी , मेरे शराबी बाप की मार तो निश्चित पड ही जाएगी  | ये लोग साहित्य व कहानियो के बारे में क्या जाने ? तब अचानक मेरे दिमाग में विचार आया की क्यों नही इसे अख़बार के संपादक के पास भेज दे ? यदि ईस्वर ने चाहा या अच्छी किस्मत हुई तो छप के आ जाएगी और इसी मधुर सपने के साथ आँख लग गई |  सुबह आँख खुली तो मुझे चीटिया खाने लगी की मेरे हाथ में अख़बार और उस संपादक का पता लू | गाँव में सिर्फ एक ही दुकान पर एक ही अख़बार आता है , उसको पढ़ने के लिए गावं वालो का हुजूम उमड़ पड़ता | आधे पढ़े लोग गुटर – गु की तरह जोर – जोर से पढ़ने लगते ऐसा लगता मानो कबूतरों का पिंजरा हो यहाँ | में उस अख़बार में गिद्ध की तरह टकटकी लगाकर बेठ गया | जब कभी खाली अखबार मिलता तो उसको तुरंत उठाकर नजरे गाड़ देता | गाँव के बड़े – बुजुर्ग  पुनः कभी हाथो से कोस लेते तो अख़बार पाने के इंतजार में पुनः टकटकी लगाकर बेठ जाता | यह खेल मेरे साथ वर्षो से होता आ रहा था | जब तक पूरा अख़बार नहीं पढ़ लेता तब तक मुझे चैन नहीं आता और मुझे अख़बार पढ़ने में हमेशा दो घंठे का वक्त लगता तो शराबी बाप की गालियाँ व मार भी पड जाती और बिच में अख़बार छोड़कर भागना पड़ता सब लोग पढ़कर चले गए इसलिए में अब अख़बार के पास अकेला ही था | उन बिखरे पेजों को समेटकर संपादक का पता हेरने लगा | आखिर में पूरा अख़बार चाटने के बाद सिर्फ इ – मेल एड्रेस ही मिला | उस इ – मेल एड्रेस को लेकर घर की तरफ आ गया | कहानी को आज ही संपादक के पास भेजने की उत्सुकता हो रही थी | जेब में फूटी कोडी भी नहीं थी | इसको भेजने के लिए दो सो रुपयों की आवशयकता थी | माँ से पैसे लेने घर पहुंचा तो देखा की हमेशा की तरह घर में गृह – युद्ध छिड़ रखा था | माँ और बाप के बिच वाक युद्ध चल रहा था | में धीमे कदमो से माँ के पास पहुँच गया और उन्हें शांत रहने के लिए विनती  करने लगा | इतनी देर में बाप लडखडाता हुआ खेत – खलिहानों की तरफ निकल गया तो गृह – युद्ध शांति में तब्दील हो गया | मेरे कंधे  का दर्द अभी भी शांत नहीं हुआ था | माँ को दिखाया कंधे पर लट्ठ के निशान साफ दिखाई दे  रहे थे | माँ की ममता पिघल गई | माँ मेरे कंधो पर हाथ मालती हुई , बाप पर गालियों की बोछार करने लगी | उसने संदूक खोला और कपड़ो में छुपाये दो सो रूपए निकालकर मेरे हाथो में दे दिए | माँ ने मुझे तुरंत डॉक्टर को दिखाने का आदेश दे दिया | में कंधे का दर्द सहन कर सकता हु लेकिन उन कहानियो का दर्द सहन नहीं हो रहा था जो मुझे दीमक की तरह खा रही थी , इसलिए जल्दी से दो सो रूपए लेकर शहर की तरफ दोड़ पड़ा | शहर में पहुँचते ही तुरंत इन्टरनेट केफे को तलाशने लगा और कुछ ही समय में वो केफे मिल गया | उस केफे वाले लड़के ने कंप्यूटर पर टाइप करना शुरू कर दिया और घंटे भर में वह उन दो हजार शब्दों की कहानी में खो गया | उसकी आँखों में पानी भर आया और बोला –यार  ऐसी कहानी किसने लिखी | पता ही नहीं चला कहानी कब टाइप हो गई ? ऐसी प्रेरणादायक कहानी पहली बार पढ़ी | में तो मेरी बहन का बाल विवाह अब हरगिज नहीं होने दूंगा | में ये गर्व के साथ कह सकता था की यह कहानी मेने लिखी लेकिन मुझे कहने का साहस नही हुआ और उसके प्र श न को आना कानी में टाल दिया परन्तु उसके कहे शब्द मेरे दिल को मंत्र – मुग्ध कर गए | उस कहानी को संपादक की इ – मेल पर भेज दिया | मेडिकल स्टोर से चार दर्द निवारक गोलियां लेकर गाँव की और निकल पड़ा | में अब हर समय मन ही मन ईश्वर का स्मरण करने लगा की अख़बार में वो कहानी छप के आ जाये | कई दिनों तक उस कहानी की प्रतीक्षा करता रहा परन्तु अख़बार में कही दिखाई नहीं दी | एक दिन में अख़बार पर टकटकी लगाये बेठा था | मेरे से दूर बेठा राहुल अख़बार पढ़  रहा था , उसने अचानक मुझे आवाज दी , ओय देख अख़बार में तेरा नाम आया है में तुरंत अख़बार की तरफ लपका और देखा की वो नाम और कहानी मेरी ही थी | राहुल कहानी पढ़ने में लीन था पढ़ने के बाद बोला की तेरे नाम वाले ने क्या गजब कहानी लिखी है | में उसे कहता की यह कहानी मेने लिखी है तो वह निश्चित कहता की तेरे नाम के इस दुनिया में लाखो है इसलिए मेने उसको कुछ नहीं बताया अख़बार अब अकेला था | में उस कहानी के पेज को चुराने की फ़िराक में था | सेठजी की नजरे चुराकर उस अख़बार के पेज को लेकर घर की और निकल पड़ा | मेरे जीवन में पहली बार इतना उत्साह ,उल्लास ,उमंग व् ख़ुशी हो रही  थी की मेरा नाम और मेरी कहानी अख़बार में आई है औ  र इस उत्शुकता के साथ मेरे तेज कदम घर की और पड रहे थे | मेने घर में कदम रखते ही इरादा बदल दिया | यह लोग साहित्य के बारे में क्या जानेंगे ? इन गरीबो को केवल पैसो से प्यार है | यदि बताया तो उलटी गालियाँ मिलेगी | मार भी पड सकती है | पहले से ही कंधो में दर्द परेशान कर रहा है उनके प्रश्नों का जवाब देना मुश्किल हो जायेगा | की कितने पैसे मिलेंगे और अब तो तेरे बाप का नाम रोशन हो गया , तेरा नाम रोशन हो गया | में इन बातों से डर गया और उस अख़बार के पेज को भी पहले से मुहं फाड़ी कहानियों के पास रद्दी में छुपा दिया | गाय बकरियों को लेकर में जंगल की और निकल पड़ा |

मंत्र – लगातार प्रयास से कठिन काम भी सफल हो जाता है 


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